Bihar Manpur Patwatoli Village: आज देश में लाखों की तादाद में बच्चे इंजीनियर और डॉक्टर बनने का सपना देखते हैं। देश के 90% माता-पिता से जब यह पूछा जाता है कि वह अपने बच्चे को क्या बनाना चाहते हैं… तो उनके मुंह से भी पहले इंजीनियर-डॉक्टर जैसे प्रोफैशंस की ही प्रायोरिटी सामने आती है। इस कड़ी में लाखों की तादाद में हर साल बच्चे आईआईटी और नीट की प्रवेश परीक्षा की तैयारी करते हैं। यही वजह है कि आज देश के हर हिस्से में इन बच्चों के लिए कोचिंग सेंटर खुल गए हैं, लेकिन यहां पर बच्चों की पढ़ाई के लिए मोटी फीस वसूली जाती है और उन्हें परीक्षा के लिए तैयार किया जाता है।
आईआईटी और नीट के लिए सबसे प्रसिद्ध शहर पूरे देश में कोटा है, जहां तमाम कोचिंग सेंटर चल रहे हैं और यहां देश के लगभग हर कोने से बच्चे पढ़ने के लिए आते हैं। ऐसे में अगर हम आपसे कहे कि बिहार का एक ऐसा गांव है, जिसे इंडिया का आईआईटीयंस गांव कहा जाता है। इतना ही नहीं यहां पर एक ऐसा कोचिंग सेंटर भी है, जहां सिर्फ ₹1 की फीस में बच्चों को आईआईटी की पढ़ाई कराई जाती है।
ये है बिहार का कोटा
बिहार का यह गांव का गया जिले में आता है। इसका नाम मानपुर पटवाटोली गांव है, जिसे पूरे देश में आईआईटीयंस गांव के नाम से प्रसिद्धि हासिल है। इस गांव को बिहार का कोटा भी कहा जाता है। इस पूरे गांव में करीबन 1000 से ज्यादा परिवार रहते हैं। गांव के लगभग हर परिवार में कोई इंजीनियर है तो कोई डॉक्टर है। इतना ही नहीं इस गांव के कई बच्चे तो विदेशों में भी नौकरी करते हैं। इस गांव में बच्चों के इंजीनियर और डॉक्टर बनने का सिलसिला साल 1992 से शुरू हुआ था। तब यहां सबसे पहले जितेंद्र प्रसाद नाम के एक शख्स ने आईआईटी की परीक्षा पास की थी। इसके बाद गांव के अन्य बच्चों ने भी आईआईटी के प्रति रुझान बढ़ने लगा और आलम यह है कि आज इस गांव को आईआईटीयंस का गांव कहा जाता है।
जितेंद्र प्रसाद है गांव के पहले इंजीनियर
बता दे इस गांव के पहले आईआईटी इंजीनियर जितेंद्र प्रसाद है, जिन्होंने आईआईटी बीएचयू से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी। इसके बाद उनकी जॉब टाटा स्टील में लगी, जहां उन्होंने करीब 2 साल नौकरी करने के बाद उन्होंने अमेरिका में जाकर नौकरी करने का फैसला किया। जितेंद्र की इस कामयाबी ने पूरे गांव के बच्चों को प्रभावित किया और बच्चों में आईआईटी की तैयारी करने की ललक जाग गई, लेकिन इस दौरान गांव में पढ़ाई के संसाधन मौजूद नहीं थे, जिसके बाद बच्चों की मदद के लिए गांव के ही दुर्गेश्वर प्रसाद और चंद्रकांत पाटेश्वरी ने अपने कदम आगे बढ़ाए और उन्होंने बच्चों के लिए एक लाइब्रेरी की शुरुआत की।
इतना ही नहीं इसके बाद तैयारी के लिए बच्चों को फ्री कोचिंग भी इन लोगों ने देना शुरू किया। इन 2 लोगों के प्रयास का ही नतीजा है कि पिछले साल इस गांव के 40 बच्चों ने आईआईटी की परीक्षा दी थी, जिनमें से 19 ने कामयाबी हासिल की है।
बड़ा गजब का है इनके कोचिंग सेंटर का रुल
आज उनके सेंटर ने करीबन 200 से ज्यादा बच्चे पढ़ाई करते हैं, जिनमें से 40 बच्चे आईआईटी और नीट की तैयारी कर रहे हैं, जबकि 150 से ज्यादा बच्चे प्राइमरी से लेकर 12वीं तक की क्लास से जुड़े हुए हैं। दुर्गेश्वर ने इन बच्चों को पढ़ाने के लिए बेहद शानदार तरीका भी इजाद किया है। उनके कोचिंग में सीनियर अपने जूनियर्स को पढ़ाते हैं, जिसके तहत आठवीं क्लास तक के बच्चे प्राइमरी सेक्शन के बच्चों को पढ़ाते हैं और आठवीं के बच्चों को दसवीं के बच्चे पढ़ाते हैं। हालांकि इस दौरान आईआईटी और नीट की तैयारी करने वाले बच्चों को खुद पढ़ाते हैं या फिर अपने गांव के आसपास के कुछ गेस्ट टीचर को उन्हें पढ़ाने के लिए बुलाते हैं।
1 रुपए की फीस पर मिलती है कोचिंग
दुर्गेश्वर के गांव में चल रहे इस कोचिंग सेंटर के खर्चे की बात करें तो एक मीडिया चैनल से बातचीत के दौरान एक बार उन्होंने खुद ही बताया था कि गांव के लोग और आसपास के लोग उनके इस काम में उनकी बहुत मदद करते हैं। 2 साल पहले जब कोरोना महामारी ने दस्तक दी, तब भी पटवाटोली के बच्चे रुके नहीं… उन्होंने अपनी तैयारी जारी रखी। इस दौरान वृक्ष संस्था के लोगों ने आस-पास के लोगों के पुराने मोबाइल और लैपटॉप को इकट्ठा किया और इन बच्चों को दिया, ताकि वह ऑनलाइन पढ़ाई कर सकें।
इसके साथ ही उन्होंने एक दिनस एक रुपए स्कीम भी शुरू की, जिसके तहत सेंटर पर पढ़ने वाले बच्चे उन्हें हर दिन की ₹1 फीस देते हैं। उनका कहना है कि इससे बच्चों के पेरेंट्स पर ज्यादा बोझ नहीं पड़ता और उनका सेंटर भी ठीक से चल जाता है। दुर्गेश्वर का कहना है कि उनके इस गांव से हर साल 10 से 12 बच्चों का सिलेक्शन आईआईटी में होता है और वह अपने गांव की बदलती तस्वीर से बेहद खुश हैं।
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