अब हाइवे पर दुर्घटना के दौरान घायलों का हो सकेगा कैशलेस इलाज, सरकार बना रही ये बड़ी योजना

नेशनल हाइवे पर दुर्घटना की स्तिथि में किसी को भी पैसों के कारण अस्पताल में भर्ती कराने में दिक्कत ना हो, इसके लिए भारत सरकार ने एक अहम कदम उठाया है। जी हां, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की ओर से ऐसे परिस्तिथियों में कैशलेस बीमा की व्यवस्था की जा रही है जिसके तहत अब किसी को भी पैसों की तंगी के कारण मेडिकल सुविधायों का उपयोग करने में देरी ना हो। एनएचएआई (National Highway Authority of India) ने स्वर्णिम चतुर्भुज योजना के तहत दिल्ली-मुंबई-चेन्नई, चेन्नई-कोलकाता, कोलकाता-आगरा और आगरा से दिल्ली कॉरिडोर पर पीड़ितों को दुर्घटना की स्थिति में कैशलेस ट्रीटमेंट की सुविधा प्रदान करने के लिए यह बोली आमंत्रित की है जिसके अंतर्गत बीमा कंपनियों को अगले तीन साल तक हाईवे पर होने वाली दुर्घटनाओं में पीड़ितों को कैशलेस ट्रीटमेंट की सुविधा देनी होगी।

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अस्पताल ले जाने से लेकर अगले 48 घँटे तक कराना होगा इलाज :-

आपको बतादें कि जो भी बीमा कंपनी इस बोली को जीत लेगी, वो हाईवे पर दुर्घटना के दौरान घायल हुए पीड़ित को अस्पताल पहुँचाने से लेकर अगले 48 घंटे तक उसका उचित इलाज कराने तक की जिम्मेदार होगी। इतना ही नही इस दौरान कंपनी को 30 हजार तक का इलाज कराना होगा। एनएचएआई के एक अधिकारी ने बताया है, ‘हमने इस मुद्दे पर कुछ बड़ी बीमा कंपनियों के साथ पहले दौर की बातचीत की है। एक बार जब कंपनी किश्त के लिए कोट का ब्यौरा दे देगी तो हम सफल बीमा कंपनी को रकम पैमेंट कर देंगे। इसके बाद उस कंपनी को हाईवे के आस-पास के अस्पतालों से समन्वय करना होगा। इसके साथ ही 24*7 एक हेल्पलाइन नंबर भी चलाना होगा। हाईवे पर एंबुलेंस को लगाना होगा।’

पहले भी सफल रही है योजना :-

मालूम हो कि इससे पहले साल 2013 में सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने इस तरह की एक योजना पायलट परियोजना के तहत चलाई थी जो उस दौरान बेहद सफल साबित हुई थी। उस योजना के तहत सबसे पहले गुड़गांव-जयपुर हाईवे पर कैशलेस ट्रीटमेंट की व्यवस्था की गई थी। फिर बाद में इस योजना का विस्तार कर इसे मुंबई-बडोदरा, रांची-ररगांव-महुलिया खंड तक कर दिया गया था। आपको बतादें कि उस पायलट योजना के तहत दुर्घटना में घायल हुए 100 फीसदी पीड़ितों को आधे घँटे के अंदर अस्पताल पहुंचाया गया था जिनमे 50 फीसदी से ज्यादा लाभान्वित आर्थिक-सामाजिक रूप से पिछड़े थे और लगभग 80 प्रतिशत लोगों को इलाज के दौरान अपनी तरफ से एक भी पैसा खर्च नहीं करना पड़ा था।