आपातकाल के विरोध में पूरे बिहार मे संपूर्ण क्रांति की गूंज सुनाई दी थी। बिहार के इस आंदोलन ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सत्ता को उखाड़ फेंकने में बड़ी भूमिका निभाई थी। लेकिन यहाँ यह जानना दिलचस्प है कि उसी बिहार की भूमि ने उन्हें राजनीति मे नया जीवनदान भी दिया था। यहाँ बात हो रही है बिहार के बेलछी नरसंहार की।
आपातकाल (Emergency) के बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव (Lok Shabha Election 1977) में इंदिरा गांधी की भारी हार का मुंह देखना पड़ा था। इसी बीच 27 मई 1977 को बेलछी में दलित नरसंहार की घटना हुई, जिसके बाद 13 अगस्त 1977 को इंदिरा गांधी ने वहां की ऐतिहासिक यात्रा की थी। नरसंहार की घटना के बाद यह किसी राजनेता का बेलछी में पहला आगमन था, जिसकी चर्चा देश के साथ विदेश मे भी हुई। आज इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि पर कुछ पुराने वाकए को याद करते हैं।
नरसंहार के बाद बेलछी पहुंचने वाली बनीं पहली नेता
बिहार में सामूहिक संघर्ष व हत्याओं का दौर 1976 के आसपास शुरू हुआ था। 1980 के बाद से लगातार ऐसी घटना बढ़ती ही गई। इसी दौर में 27 मई 1977 में पटना जिले के बेलछी गांव में 14 दलितों को मौत के घाट उतार दिया गया था। इस सामूहिक हत्याकांड के साथ ही ‘नरसंहार’ शब्द चर्चा में आया। वैसे तो बेलछी पटना जिला में है, लेकिन आवागमन की दृष्टि से यह नालंदा के हरनौत के करीब है।
इलाके के दुर्गम स्थिति के कारण नरसंहार के महीनों बाद तक वहां कोई राजनेता नहीं पहुंचा था, लेकिन इंदिरा ने इस मौका को हाथ से नहीं जाने दिया। घटना के ढाई महीने बाद 13 अगस्त 1977 को वे जब हरनौत से बेलछी तक 15 किलोमीटर के दुर्गम रास्ते को पार कर वहां वे पहुंचीं तब तक वे बाजी मार चुकीं थीं। नरसंहार के बाद बेलछी पहुंचने वाली वे पहली राजनेता थीं, इसके साथ ही यह गांव दुनियाभर में चर्चा में आ गया।
न्यूयॉर्क टाइम्स ने बताया था ‘द गॉल’ व ‘मॉम जनरल’
इंदिरा गांधी की वह यात्रा देश-विदेश में चर्चा का विषय बनी। आपातकाल के बाद के चुनाव में भारी पराजय के कारण धूमिल हुई राजनीतिक प्रतिष्ठा को वे इस यात्रा से पाने मे सफल रही। तब 24 दिसंबर 1977 के अपने अंक में न्यूयॉर्क टाइम्स (Newyork Times) ने मीनू मसानी के हवाले से इंदिरा गांधी को ‘द गॉल’ व ‘मॉम जनरल’ की उपाधि दी। बेलछी से लौटते वक्त इंदिरा गांधी पटना में जयप्रकाश नारायण से मिलीं, जो आपातकाल के विरोध में हुए आंदोलन के नेतृत्वकारी थे। गांधीवादी रजी अहमद के अनुसार जययप्रकाश नारायण के जीवन के आखिरी दौर में इंदिरा गांधी से उनके रिश्ते सुधर चुके थे।
गरीब जनता को इंदिरा में दिखी उम्मीद की किरण
कांग्रेस के अध्यक्ष रहे सीताराम केसरी ने इंदिरा गांधी की बेलछी यात्रा की तुलना महात्मा गांधी के दांडी मार्च की थी। इसके पक्ष-विपक्ष में बेशक कई तर्क हो सकते हैं, लेकिन बेलछी की गरीब जनता को उस वक्त इंदिरा में उम्मीद की किरण दिखी थी। यह बात उस समय इंदिरा के समर्थन मे उमड़े भावनात्मक नारे से हीं स्पष्ट है- ”इंदिरा तेरे अभाव में, हरिजन मारे जाते हैं।”
कीचड़ सने रास्ते पर हाथी पर व पैदल चलीं इंदिरा
साल 1977 के 27 मई को आठ पासवान और तीन सुनार जाति के लोगों को जीवित जला दिया गया था। कुल 14 दलितों की हत्या हुई थी। नरसंहार का आरोप कुर्मी बिरादरी के लोगों के ऊपर लगा था। यह वह दौर था जब इंदिरा गांधी आपातकाल के बाद सत्ता से बेदखल हो गई थी। बेलछी कांड की जानकारी मिलने पर इंदिरा ने यहां आने का फैसला किया। 13 अगस्त 1977 को भारी बारिश के बीच वे कीचड़ सने रास्ते से होकर हाथी पर बैठकर बेलछी गांव पहुंचीं। अपराध से त्रस्त इस दुर्गम इलाके में भारी बारिश के बीच कीचड़ सने रास्ते से होकर यह यात्रा बहुत मुश्किल थी। ऐसे मे इंदिरा गांधी ऐसे रास्ते पर पैदल भी चल पड़ी। किसी तरह जब वे बेलछी पहुंचीं, तब उनका उम्मीदों से भरा स्वागत किया गया।
आंचल फैलाकर ले रहीं थी शिकायतों के कागजात
गांव के पुराने लोग उस समय का आँखों देखा हाल बताते हुए कहते हैं कि इंदिरा गांधी आंचल फैलाकर लोगों की शिकायतों के कागजात ले रहीं थीं। गांव की संकरी गलियों और टूटी सड़कों पर इंदिरा गांधी को देखने के लिए भीड़ टूट पड़ी थी। झाेपडि़यों के छप्पर व खपरैल तथा पेड़ों पर भी चढ़ कर लोग उन्हें देख रहे थे। नरसंहार के बाद तब तक किसी राजनेता के इस पहले दौरे से वहां के आतन्कित् लोगों को उम्मीद की नई किरण नजर आई थी।
वादों के मारे बेलछी में आज भी अधूरी हैं उम्मीदें
इसके बाद वहां अन्य राजनेता भी पहुंचे, लेकिन इंदिरा गाँधी बाजी मार चुकीं थीं। उस दौर में जो वादे किए गए थे उससे लगा था कि बेलछी के दुर्दिन अब समाप्त हो जाएंगे, लेकिन ग्रामीण इस बात से खफा हैं कि ये वादे अभी तक पूरे नहीं किए गए। जिस बेलछी ने इंदिरा गांधी को उनका पुराना राजनीतिक कद वापस किया, उसके विकास को लेकर आगे की सरकारों के काम से वहां के लोग बेहद नाराज हैं। इनमें कुछ सरकारों में कांग्रेस भी शामिल रही। गांव में आज भी मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव है। वादों के मारे बेलछी में इंदिरा की उस यात्रा से जगी उम्मीदें आज भी अधूरी हीं दिखती हैं।
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