भागलपुर के सिल्क की जपान, जर्मनी, और अमेरिका मे है जबरदस्त माँग, फिर भी रोने को क्यों विवश है बुनकर

शनिवार के दिन पूरे देश मे हस्तकतघा दिवस मनाया गया, लेकिन क्या आप इसकी वास्तविक स्थिति से रु ब रु हैं? हस्तकरघा बुनकर खुद अपनी पहचान खोते जा रहे हैं। सरकारी योजनाएं कागजों में सिमट चुकी हैं। इसका लाभ बुनकरों की बजाय बिचौलिये को मिल रहा है, ऐसे मे ये बुनकर् अपना पुश्तैनी धंधा छोड़कर रोजगार की तलाश में पलायन करने को मजबूर हैं।

भागलपुर जो कभी सिल्क सिटी के नाम से मशहूर था, वहाँ दो दशक बाद भी 50 हजार बुनकर मुख्यधारा से नहीं जुड़ सके, 15 हजार पावरलूम बुनकर और 2372 हस्तकरघा बुनकर ही निबंधित हो सके हैं। बुनकरो को आय प्राप्त ना हो पाने के अभाव मे भागलपुर अब अपनी रेशमी चमक खोता जा रहा है। रेशमी वस्त्रों की चमक अब फीकी पडऩे लगी है। विदेशी मुद्रा दिलाने वाला रेशम उद्योग अपनी पहचान खो रहा है।

अभी भी जापान, जर्मनी और अमेरिका जैसे देशों मे भागलपुरी सिल्क की काफी मांग है। वहा पर्दा, सोफा कवर, कुशन कवर, वाल फर्निङ्क्षशग के साथ ड्रेस मैटेरियल में भगलपुरी के रेशमी कपड़ों को खुब पसन्द किया जाता है। मटका सिल्क, तसर, नूयाल, घिच्चा, केला रेशम, सूती व लीनन धागों के साथ बिस्कोस का इस्तेमाल होता है। लेकिन बुनकरों के हुनर को कीमत दिलाने में सरकार की योजनाएं फिसड्डी साबित हो रही हैं और बिचौलिये की पांचों उंगलिया घी मे है।

भागलपुर के पुरैनी गांव में 350 वर्षों से अधिक समय से बुनकरों ने अपनी पुरखों की हस्तशिल्प कला को किसी तरह जिंदा रखा है। यहाँ कभी 10 हजार से अधिक हस्तकरघा हुआ करते थे, लेकिन अब हालत यह है कि 500 हस्तकरघा बुनकर ही इस काम मे है, उन्हें भी पर्याप्त आमदनी नहीं हो पाती। संसाधनों की कमी और प्रशासनिक उदासीनता के कारण पुरैनी क्लस्टर में दो करोड़ की लागत से बनाए गए सामान्य सुविधा व आधुनिक रंगाई केंद्र मे ताला लगा हुआ है जिसे बुनकरो की स्थिति मे सुधार लाने के लिए बनाया गया था।

शकुल्लाहचक, नयाटोला, हुसैनाबाद, अंबाबाग व कुतुबगंज में 1989 से पहले लगभग 1000 हस्तकरघा लगे हुए थे, लेकिन अब इसकी संख्या 500 मे सिमट कर रह चुकी है। अब हुसैनाबाद के बुनकर अपना पुश्तैनी काम छोड़कर सिलाई के कार्य से जुड चुके हैं, कभी यहाँ हर घर में एक हस्तकरघा हुआ करता था। जो महिलाएं कभी चरखा चलाकर रेशम के धागे तैयार करती थीं,अब वे पापड़ बेलने को विवश हैं। चमेलीचक में तो यह हालत है को यहाँ अब 90 फीसद लोगों ने पुश्तैनी पेशा छोड़ दिया है। हबीबपुर मोमीनटोला में जहां पहले तीन सौ के करीब हस्तकरघा पर कपड़े तैयार किए जाते थे, लेकिन अब इनकी संख्या 25 मे सिमट चुकी है। बुनकरों को बाजार उपलब्ध कराने के उद्येश्य से केंद्र सरकार द्वारा नौ करोड़ रुपये का फंड जारी किया गया था, लेकिन स्थानीय प्रशासन की उदासीनता और भूखंड उपलब्ध नहीं कराने के कारण सिल्क हाट की योजना वापस लौट गई।

राज्य सरकार द्वारा लगभग 10 करोड़ के लागत से रेशम भवन का निर्माण कराया था। इसका निर्माण इस विचार के साथ किया गया था कि केंद्र व राज्य सरकार के कार्यालय को एक ही छत के नीचे स्थापित करने से बुनकरों को सुविधा मिलेगी। यहां बुनकरों को स्टाल उपलब्ध कराए जाने थे, ताकि उनके तैयार उत्पाद की बिक्री हो सकें। दो माह पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा भवन का उद्घाटन भी किया गया लेकिन भवन में अभी भी ताला लटका हुआ है।

केंद्र सरकार द्वारा बांका के तीन और भागलपुर के सात क्लस्टर को मेगा क्लस्टर मे शामिल किया गया ,यहां प्रशिक्षण की व्यवस्था भी है, लेकिन इसे हबीबपुर स्थित संघ कार्यालय से इसे संचालित किया जा रहा है। इसमें डिजाइन स्टूडियो का भवन निर्माण का काम तो पूरा हुआ लेकिन संसाधन की कमी के चलते सन्चालित नहीं हो पाया। सामान्य सुविधा केंद्र का कार्य इसके निर्माण के सात वर्ष बाद भी पूरा नहीं हो पाया।

बुनकरो की स्थिति मे कब से गिरावट आई उसका भी एक अलग ही इतिहास है, 1989 से पूर्व तक सिल्क का कारोबार अपने चरम पर था लेकिन इस धंधे से नए लोग जुड़ते चलें गए और उन्होंने हस्तकरघा भी लगाए। एक तथ्य यह था कि भारत में तैयार कपड़ा चीन के मुकाबले कीमती था, तो इस प्रतिस्पर्धा का मुकाबला करने के कुए और अधिक मुनाफे की लालच मे रेशमी कपड़ों की गुणवत्ता के साथ व्यापारियों द्वारा छेड़छाड़ शुरू कर दी गई। उन्होंने सिल्क में बिस्कोस व सूती धागों की मिलावट शुरू कर दी। इससे धंधे पर असर पड़ा। जो बुनकर पूरे साल इससे आजीविका कमाते थे, वहीं अब उन्हें मुश्किल से चार माह भी काम नहीं मिल पा रहा है।

मुख्यमंत्री ने हस्तकरघा विकास योजना के जरिये जिले के बुनकरों को हस्तकरघा की खरीदारी व कच्चे मैटेरियल के लिए 20 हजार की राशि उपलब्ध कराने का उद्येश्य रखा था। इसके लिए पहले चरण में 1372 बुनकरों को व दूसरे चरण में 13 सौ बुनकरों को योजना से जोड़ा गया। उन्हें 2014 तक 15 हजार रुपये का लाभ मिला, लेकिन बैंक द्वारा क्रेडिट कार्ड के अभाव मे बुनकर पांच हजार रुपये के लाभ वंचित रह गए। 60 फीसद बुनकरों के पास क्रेडिट कार्ड नहीं होने की वजह से सरकार को पांच हजार की राशि वापस कर दी गई।

Manish Kumar

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